प्रकृति और इंसान
प्रकृति और इंसान
प्रकृति सदा देती है
इंसान को फूल व फल
उनसे होता है जीवन
रस व सुगंध से भरपूर
फलों से लदकर
झुक जाती हैं डालिया
कि हाथ बढ़ाकर
कोई भी उन्हें तोड़ ले
पेड़ बेगरज हैं ?
उन्हें परहेज नहीं इससे
कि उन्हें चखनेवाला कौन है ?
क्या है उसकी भाषा व जाति
किस प्रांत से वह है
वह तो दोनों हाथों
बांटती है उपहार
मनुष्य का स्वभाव है इसके विपरीत
उसे तो मतलब है अपने
निज स्वार्थ व सुख से
पेड़ की जगह
खड़ा होता है उसके सुख का भवन
असमय तोड़ लिये जाते हैं
फूल व फल
बेच देने को बाजार में
फिर मनुष्य के कारण
बदनाम होता है फूल व फल
आओ कुछ सीखें
प्रकृति के निस्वार्थ स्वभाव से
सीखें विश्व बंधुत्व और
समाज को देने की सीख
न बिगाड़े प्रकृति का संतुलन
निज स्वार्थ में
सुनामी, बाढ़ व भूकंप
उसका गुस्सा है
चेतावनी है इस बात की
कि बहुत हुआ,अब चेत जाओ ।
कविता के संबंध में 10 शब्द -
आओ कुछ सीखें प्रकृति के निस्वार्थ स्वभाव से
विश्व बंधुत्व व समाज को देने की सीख।