प्रिय सुशांत
प्रिय सुशांत
प्रिय सुशांत
इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले
तुमने सोचा होगा
यकीनन सोचा होगा
यह दुनिया रहने के काबिल नहीं है
चल पड़ते हैं
किसी और चरागाह की तलाश में।
किसी शायर ने कहा है
आज तो घबरा के कहते हैं मर जाएंगे
मर कर भी चैन ना पाया तो किधर जाएंगे।
मुझे बस इतना ही
कहना है तुमसे
महलों में रहने वाले
एक बार झोपड़ी वालों को
तो देख लिया होता
मजबूत आर्थिक स्थिति वाले
एक बेरोज़गार को तो देख लिया होता
इतनी बड़ी वार्डरोब के मालिक
एक बार अधनंगे शरीर को देख लिया होता
भरपेट खाने वाले
किसी भूखे को तो देख लिया होता।
कौन इंसान है
जिसको कोई समस्या नहीं
कोई उलझन नहीं
संघर्ष नहीं
तकरार नहीं।
मान लो तुम्हें किसी
प्रेम सम्बन्ध का झटका लगा
जीवन में तो बड़े बड़े
झटके लगते ही रहते हैं
इतने कमजोर क्यों पड़ गए
बताओ ज़रा
वैसे भी अब समाज ने
सात जन्मों के बंधन को
नकार दिया गया है
आधुनिक समय में तो
''आगे बढ़ो''
रिवाज़ चल पड़ा है।
लटकने से पहले
सोचा ही नहीं
बूढ़े बाप का क्या होगा
बहन का क्या होगा
अपने ही स्वार्थ की धुन में
उन्हें किस बात की सज़ा
देकर चले गए।
तुम किसी दोस्त से मन की
बात कर सकते थे
किसी रिश्तेदार को
साझेदार बना सकते थे।
अपने दु:ख तकलीफ
बांट सकते थे।
माना लॉक डाऊन था
फोन तो तुम्हारे पास था
माना कोरोना तनाव था
उतर आते तुम
सामाजिक क्षेत्र में
लोगों की भलाई के लिए।
क्या तुम जानते नहीं
हर सफलता रूपी भवन के नीचे
सैंकड़ों असफलताओं की
नींव होती है।
तुम साइंस के
होनहार विद्यार्थी रहे
टीवी में सफलता मिली
बॉलीवुड में सफल फिल्में दी
और क्या चाहिए था तुम्हें।
मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं
मैं केवल तुम्हारी प्रशंसक हूं
पूछना चाहती हूं
अपने जीवन को खत्म का
हक तुम्हें किसने दिया।
जब तुम जीवन दे नहीं सकते
जीवन ले कैसे सकते हो
प्रिय सुशांत।