परिवार---उनकी पीड़ा...!
परिवार---उनकी पीड़ा...!
कितनी आसानी से
बाँट लिया था
उन्होंने
अपने माँ- बाप को
तीन हिस्सों में!
कमाल तो तब हुआ
जब दोनों छोटे ने
एक माँ के दो टुकड़े कर
आधा आधा रख लिया
यह कहकर कि...
हम ज्यादा नहीं कमाते..
माँ...!
एक वक्त छोटे के पास
दूसरे वक्त मेरे पास खा लेना ;
और बड़े ने...
अपने हिस्से में
सेवा निवृत्त बाप को लिया,
सेवा लेने के लिए!...!
सेवानिवृत्ति के बाद
अच्छी रकम मिल जाता
बुड्ढा कुछ तो देगा.../
घर- बार भी देखेगा!...
पर...!
छोड़ो ज्यादा क्या सोचना...
आदत है इसकी
अपना काम करता रहेगा,
शायद...!
यही सोचकर बड़े ने
संभाल ली थी
उस पिता की जिम्मेदारी
जिसने नहीं देखा कभी अपना सुख/
अपना चैन/
और आनंद के पल/
रात होता या दिन
बस...
बैल की तरह
जुटा रहता उनको पालने में
अपने कर्तव्य पथ पर चलता रहता
उसका अभिमान तोड़ दिया
उन्होंने मिलकर
बाँट दिया/
अपने माता- पिता को टुकड़ों में
अपने निज स्वार्थ के लिए...!
उनकी पीड़ा कौन समझे...,??