परिंदे सोचते हैं
परिंदे सोचते हैं
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परिंदे सोचते है कि यह सारे इंसान कहाँ गए
उनके क्रियाकलापों के वह निशान कहाँ गए
चहल पहल से गलियों को आबाद करने वाले वह कारवां कहाँ गए
दिन रात चलने वाले वाहन और वह धूल और धुआं कहाँ गए
शोर मचाते हुए मशीनों के वह कारखाने कहाँ गए
इंसानों की थी जब बादशाहत वह जमाने कहाँ गए
क्यों वह अपने घोंसलों में छुपे हैं, सैरो तफरी के वह दीवाने कहाँ गए
सुबह शाम हुल्लड़ मचाते वह जवान कहाँ गए
परिंदे सोचते हैं कि यह सारे इंसान कहाँ गए