खोने का डर कैसा
खोने का डर कैसा
पाने की ललक जब हो बरकरार
तो खो देने का डर कैसा
क़िस्मत तेरे साथ खेल खेलेगी जरूर,
तू अपने पौरुष पर कर भरोसा
एक मोती हाथ से फिसल गया तो क्या
जग तो अथाह सागर जैसा
डुबकी फिर लगा, हाथ फिर बढ़ा,
ढूंढ ला दूसरा मोती अद्भुत सा