कुर्बान हो गए
कुर्बान हो गए
वक्त के हाथों ना जाने कितने कुर्बान हो गए
जो कभी शानदार इमारत थे,खंडहर के निशान हो गए
वक्त के साथ लोग भी कितना बदल जाते हैं साहब
जो कभी मिलते थे मुस्करा कर आज अंजान हो गए
बहुत बेफिक्र होकर घुमा करते थे गलियों चौबारों में
वक्त ऐसा आया कि हम भी सावधान हो गए
जो दूसरों के साथ ज्यादतियां करते नहीं थकते थे
जब खुद को जरा खरोंच आई तो परेशान हो गए!