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Dr Priyank Prakhar

Abstract

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Dr Priyank Prakhar

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ओ चित्रकार

ओ चित्रकार

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ओ चित्रकार ओ चित्रकार

कभी थोड़ा कभी अपार

अपनी कूंची के रंगों से

रंग दो धरती को फिर एक बार

ओ चित्रकार ओ चित्रकार


कभी मापे सुंदरता अंगों से

कभी चमड़ी के इन रंगों से

फिर नित होते इन दंगों से

करती मानवता अब चीत्कार

ओ चित्रकार ओ चित्रकार


दुख कैसा ये छाया है

पल कैसा ये आया है

है किसकी ये माया है

सुन ले तू मेरी पुकार

ओ चित्रकार ओ चित्रकार


हर हृदय से, हर दृष्टि से 

हर मानव से, इस सृष्टि से

अपने रश्मित रंगों की वृष्टि से

करो दूर ये अंधकार

ओ चित्रकार ओ चित्रकार


कर दो गीला हर तन को

होने दो सीला हर मन को

फलने दो जीवन वन को

हो रंगों की फिर वही फुहार

ओ चित्रकार ओ चित्रकार।



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