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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

Abstract

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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

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अगरबत्ती के धुँए सी ज़िंदगी

अगरबत्ती के धुँए सी ज़िंदगी

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ज़िंदगी अगरबत्ती के धुंए सी है

मंद मंद सुलग रही है

किसी को अपनी 

महक से लुभाती है


और किसी के लिए

सिरदर्द बन जाती है

सबकी अपनी तासीर है

किसी को मोगरे की


महक लुभाती तो किसी

को दिमाग पर चढ़

जाती है लेकिन

फिर भी अगरबत्ती की


तरह सब की ज़िंदगी 

सुलग-सुलग कर

किसी न किसी को

अपनी महक से लुभा रही है।


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