चाह नहीं रहा अब तुम्हें पाने का इसीलिए जुदाई में मस्ती से जी लेता हूं।।
चाह नहीं रहा अब तुम्हें पाने का इसीलिए जुदाई में मस्ती से जी लेता हूं।।
गम जुदाई का पी लेता हूं
तेरे तस्वीर के साथ जी लेता हूं
चाह नहीं रहा अब तुम्हें पाने का
इसीलिए जुदाई में मस्ती से जी लेता हूं।
ऐ दिल रुबा सुन मेरे शब्दों को
हर शब्दों में तुम्हें पिरोता हूं
सीधा सीधा स्टेज से
संगीत मय आवाज लगाता हूं
चाह नहीं रहा अब तुम्हें पाने का
इसीलिए जुदाई में मस्ती से जी लेता हूं।
अभी भी रुह के कोने-कोने में
सर ताज तुम्हारी पाता हूं
कोमल हाथों का स्पर्श तुम्हारी
यादें यादों में खो जाता हूं
चाह नहीं रहा अब तुम्हें पाने का
इसीलिए जुदाई में मस्ती से जी लेता हूं।
वन के उस स्वर्णिम क्षण में
कभी कभी ऐसे खो जाता हूं
जैसे नयन में तस्वीर तुम्हारी
तरोताजा क्षण क्षण का पाता हूं
चाह नहीं रही अब तुम्हें पाने की
इसीलिए जुदाई में मस्ती से जी लेता हूं।
