मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ
हूँ तो मैं एक शांत झील सी
मौन मस्त सी गहरी ठहरी
जीवन रुपी बिहड़ जंगल में
बहती हूँ मैं हल्की बयार सी
उठती हूँ आग की लपटों सी
गिरती हूँ बूँद शबनम सी
मन से उठते शोलों के संग भी
खेलती हूँ कभी धधकती
सोंधेपन से लिपटी रहती
अत्याचारों के ख़िलाफ़ लड़ती
नारी मन की आवाज़ हूँ मैं
वाग्बाण पर ज्वाला सी जलती
तड़ीत सी गरजती बरसती
आँखों से हूँ आग उगलती
स्पंदन की प्यासी ही जानो
ममता का निनाद मानो
परिवार की नींव के भीतर
अपनेपन का आगाज़ भरती
देती हरदम उष्मा उर की
निर्झर निर्मल प्रीत की गगरी
दिनरथ की धुरी पर बहती
बाँटती फिरती कण-कण अपने
वजूद की हर एक पंक्ति
संसार चलता दम पर जिसके
उस आस की परिभाषा हूँ
अपने आप में बेमिसाल सी
मैं सुंदर सुशील नारी हूँ।।