STORYMIRROR

संजय कुमार

Abstract

4  

संजय कुमार

Abstract

आत्मनिर्भर

आत्मनिर्भर

1 min
715

कहे मुसाफिर बनो आत्मनिर्भर

नहीं को साथी तुम्हारा यहाँ पर

भरोसा न करना हम पर कभी तुम

मैं हूं मुसाफिर चला जाऊंगा मैं

कहे मुसाफिर बनो आत्मनिर्भर

दुर्लभ है पथ यहाँ पग रखना संभल के

व्यर्थ न करना समय अपना हम पर

भर देना झोली आए समय जब

नहीं कोई साथी तुम्हारा यहाँ पर

कहे मुसाफिर बनो आत्मनिर्भर

कहे ये नरपति रहो आत्मनिर्भर

मैं हूं गारद कहने को केवल

दुरूह है करना कुछ भी यहाँ पर

नहीं चाह मेरी करने को कुछ भी

जो भी हो सम्यक कर लो तुम खुद ही

कहे मुसाफिर बनो आत्मनिर्भर

बनो तुम अपना खुद ही सहारा

नहीं है यहाँ पर कोई भी तुम्हरा

कहे मुसाफिर रहो आत्मनिर्भर

नहीं कोई साथी तुम्हारा यहाँ पर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract