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संजय कुमार

Tragedy

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संजय कुमार

Tragedy

परिंदे प्यार के

परिंदे प्यार के

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जन्म दिया था,कुदरत ने हमको

उड़ती खुली जिंदगी जीने को


मानव ने कैसे कैद कर लिया

अपने शौक हम से पूरे करने को।


थे,कितने सुंदर पंख हमारे

जब खुली गगन में उड़ते थे


मिलते थे,उड़ते सुंदर पवनों से

नीले बादल से बातें करते थे


सूरज के पहली किरणों के संग

सरवर तट पर जाते थे


निर्मल दिखते सलिल नीर से

अपने सुंदर पंखों को नहलाते थे


मन करता जाता जहां कहीं भी

सुंदर संसार की सैर हम करते थे


आ जाते वापस वास अपने,फिर

जब नवरत वापस आते थे।


सुंदर दिखता नील गगन सब

जब सखियों संग मड़राते थे


आते थे जब सावन के बादल 

गगन को सावन के गीत सुनाते थे।


रुक गए हैं,कदम आया जब से मनुष्य

वर्षों से अपनी दुनिया नहीं देखी है।


न रही वो खुशी न है वो जिंदगी

मानव ने जब से हम पर है,ढाया कहर।


भूला नीला गगन, भूला सुंदर नगर

दिखता है हर घड़ी यही छोटा सा घर।


संसार छोटा हुआ मैं खिलौना हुआ

आए हैं जब से हम मानव के महल।


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