STORYMIRROR

Pramila Singh

Classics

4  

Pramila Singh

Classics

देर बहूत कर दी आने के लिए

देर बहूत कर दी आने के लिए

1 min
93


कुछ रास्तों पर चलकर कोई मंजिल नहीं थी मेरी

हम चलते रहे बस तेरा साथ निभाने के लिए


 तुम हर कदम पर उलझने नयी खड़ी करते रहे 

सिर्फ और सिर्फ मुझे आजमाने के लिए


तेरी यादों को पूंजी बना कर, जीते रहे हम एक उम्र

और तुझे लम्हा न लगा हमें भुलाने के लिए


हां तुझ से खफा होकर तेरी महफिल छोड़ आए थे हम

तुम एक दफे तो आ जाते हमें बुलाने के लिए


सितारों से भरे राहों की ख्वाहिश कभी नहीं की थी मैंने

मुझे तो बस कुछ फूल चाहिए बगिया महकाने के लिए


बहुत देर से तेरे दर पर खड़े थे हाले दिन सुनाने के लिए

तुमने ही देर बहुत कर दी आने के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics