ओ स्त्री! देख तू बता ज़रा
ओ स्त्री! देख तू बता ज़रा
देख तू बता ज़रा, निर्बल तू किस प्रकार है।
आरंभ है निर्माण का, जीवन का तू आधार है।।
प्रतीक है प्रकृति की, प्रतिबिंब है तू शक्ति की।
ईश्वर के ही समरूप कुछ, ईश्वर का तू उपहार है।।
जगत की तू संचालिनी, ना कोई वस्तु मात्र है।
ब्रह्मा के शब्दों से रचित, सम्पूर्ण एक शास्त्र है।।
है प्रेम का पर्याय तू, हर मर्म में उपाय तू।
बलिदान की हे स्वामिनी, श्रृद्धा सुमन की पात्र है।।
तू एक रूप अनेक है, व्यक्तित्व से विशाल है।
गौरी है तो दयाल तू, गर काली है तो विकराल है।।
करुणा से ओत-प्रोत है, ममता की अखंड ज्योत है।
तू धरा सी धैर्य धारिणी, सहिष्णुता की मशाल है ।।
क्षीण है तू हीन है, स्वयं को, इस विचार से तू मुक्त कर।
अपने मान, स्वाभिमान को, निःसंकोच तू अभिव्यक्त कर।।
तेरा भी अस्तित्व है, जो तेरा ही दायित्व है।
बन कामिनी से दामिनी, हिय को वह्नि सम सशक्त कर।।
हो दीप्त प्रचंड ज्वाल सी, तो अंधकार सब अस्त होंगे।
तेरे ही आत्मविश्वास से, पस्त कष्ट समस्त होंगे।।
अटल है तो अजय है तू, दृढ़ है तो विजय है तू।
तू सैलाब बन तरंगिणी, तभी बाँध सब ध्वस्त होंगे।।