मन बैठ तनिक सुन कथा मेरी
मन बैठ तनिक सुन कथा मेरी
मन बैठ तनिक सुन कथा मेरी,
है कौन यहाँ सुने व्यथा तेरी।
एक तू ही तेरा संबल है,
क्यों इस प्रकार तू चंचल है??
समय जब सब सुख हर लेता है,
हर शख़्स किनारा कर लेता है।
कोई जतन काम न आता है,
अब कौन हाथ पकड़ता है??
छाई सब ओर निराशा है,
सखी अब एक हताशा है।
हुआ अंधकारमय जीवन है,
बड़ा मगन शोक में तू मन है।।
हो विकल छोड़ धीरज की डोर,
न अवलम्ब मिलेगा किसी छोर।
संताप ये कुछ क्षण भर का है,
विलाप ये कुछ क्षण भर का है।।
जो ठहर गए थक कर मग में,
कहाँ वो मंजिल पाते हैं।
भंवर में ऊपर उठते हैं,
जो हाथ-पाँव चलाते हैं।।
जो गिरे नहीं ठूँठ बन कर,
वृक्ष वही खिल पाते हैं।
जो सहते हैं आँधी, ओले,
वृक्ष वही फल पाते हैं।।
नहीं डूबती नाव कभी,
सागर में हो नीर अथाह।
कश्ती वही डूबती है,
जो देती जल को भीतर राह।।
मिट जाती हैं वो नदियाँ,
जो पर्वत से घबराती हैं।
सरिता वही बहे युग-युग,
पर्वत जो चीर दिखाती है।।
कब ठहरा है पतझार सदा,
कब आया नहीं वसंत बता।
भले ज्वार विभिषक आया है,
चिरकाल कौन टिक पाया है??
अभी गरज रहे हैं मेघ घने,
बरबस बरसे हैं वज्र बने।
कर सब्र, धूप खिल जाने दे,
बाती को नेह मिल जाने दे।।
आशा के दीप जला ले तू,
पंखों को और फैला ले तू।
तूफान से डट कर लड़ जा तू,
बादलों से ऊपर उड़ जा तू।।
तेरी हिम्मत से घबराएगा,
कोई संकट टिक न पाएगा।।
फिर से नई सुबह होगी,
उजली-उजली हर जगह होगी।।
