नारी दुश्मनो पर भारी
नारी दुश्मनो पर भारी
आज की नारी को पहचान लो
वो मूर्ति नहीं इंसान है
कितनी दूर निकल आयी
रिश्तों को निभाते निभाते
खुद को खो कर फिर से चल पड़ी
क्यूंकि उसमे भी जान है !
शक्ति से प्रज्वलित है वो
आंसुओं का समंदर है वो
भस्म कर देगी उसके मौन शब्द
वक़्त बीत गया खिलौना
समझ के खेलते खेलते
अब उसकी एक पहचान है!
नई डगर,नई सुनहरी चमक लिए
मिटटी को रंगीन बनाते बनाते
बहुत हुआ सताना रुलाना
मेहनत का पसीना बहाते बहाते
उठ बैठी उगते सवेरे के साथ
अब हक़ से जीना उसका अभिमान है!
सजावट उसका गहना नहीं
अन्याय सहना अब फितरत नहीं
भूल गयी जो हसना तराशते तराशते
झुक गयी थी जो नज़र और कमर
टेढ़ी लकीर को सीधा कर दिया
ये ही तो नारी की शान है !
मत भूलों मूर्ति में भी जान है
शीश झुकाते तुम देवी के हर रूप को
दीप धुप से अपनी आवाज़ पहुंचाते
सुख समृद्धि की कामना करते
पर थकते नहीं नारी को दुःख देते देते
याद रखना हर नारी में देवी विद्यमान है
सबसे अलग ,सबसे अनोखी उसकी पहचान है !