STORYMIRROR

SUNIL JI GARG

Inspirational

4  

SUNIL JI GARG

Inspirational

नारी तुम केवल श्रद्धा नहीं

नारी तुम केवल श्रद्धा नहीं

1 min
410

रूप बताकर तेरे अनेक 

सबको गया भरमाया 

तेरा सरल एक इंसानी रूप 

इंसान ही नहीं समझ पाया


वैसे खुद तू भी अलग है 

सबसे यही दिखलाती है 

जिस रूप में रहना हो 

फायदेमंद वही दर्शाती है 


बात किसी के दोष का नहीं 

सामाजिक रवायतों का है 

बड़ा मुश्किल है इन्हें तोड़ना

समझ के अपने दायरों का है 


ये दुर्गा, लक्ष्मी, चंडी, गौरी 

शब्द जानबूझकर गए चिपकाए 

देवी बनाकर रखा सबसे दूर

ताकि इंसान कौन तू जान न पाए 


ये वक़्त अभी भी नहीं बदला 

झूठ पर सच का है मुलम्मा

सम्मान का नाटक करने लगे हैं 

मना कर साल में एक दिवस मेरी अम्मा 


वैसे उम्मीद रखनी चाहिये कि

शायद कल कुछ तो सोच बदलेगी

कोई किरण, मैरी या लक्ष्मी उठेगी 

नजरिया बदलेगा, समीक्षा सुधरेगी


माना ये बदलाव, एक लम्बी डगर है 

पर चलना तो शुरू करना ही पड़ेगा

कविता, कहानियाँ भी लिखी जायेंगी 

सड़क पर उतरकर भी कोई लड़ेगा


यह है मेरी इक मंद्र आवाज,

मगर एक खुद से किया ये वादा 

नारी तुम केवल श्रद्धा नहीं 

हो एक चट्टान सा अटल इरादा!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational