बालिका शिक्षा
बालिका शिक्षा
एक बार भैया से मैंने पूछा,
रोज सुबह कहां जाते हो?
भैया बोला....काम करो अपना,
व्यर्थ समय क्यों गँवाते हो??
माँज बर्तन पका तू रोटी,
तेरी उम्र अभी है छोटी।
चर्चा में समय न बिता,
घर के काम में हाथ बटाँ।
बात हुई घर में एक दिन
मुझको फिर यह पता चला
शिक्षित होकर बढ़ेगा आगे,
करेगा फिर सब का भला।
लादकर तन पर एक बस्ता,
जाता पाठशाला वह तो हंसता।
खुशी मन में बसी निराली,
जैसे मनाए होली दीवाली।
बापू दिला दो मुझको भी शिक्षा,
दे दो बस इतनी सी भिक्षा।
मुझको भी स्कूल जाना है,
कुछ बनकर तुम को दिखाना है।
बापू बोला नहीं पढ़ सकती,
क्योंकि तू है बालिका।
तुझको शिक्षा का क्या है करना,
दूसरे घर की है तू चालिका।
कसम खाकर सच में कहती,
कभी कदम ना हटाऊंगी।
आगे बढूँगी प्रतिपल फिर मैं,
देश का मान बढ़ाऊँगी।
शिक्षित यदि हो गई मैं भी,
हृदय मेरा मुस्काएगा।
तेरी बगिया का मुरझाया फूल,
फिर से ही खिल जाएगा।
बालिका नहीं बालक से कम,
इतना बापू जान ले।
बल्कि ज्यादा ही है वह,
इसको अब तू मान ले।
दे दे मुझको शिक्षा का दान,
नहीं होने दूंगी तेरा अपमान।
अपने घर के साथ साथ,
बढाऊँगी दूसरे घर का मान।
बढाऊँगी दूसरे घर का मान।