नारी
नारी
तू कल-कल करता पानी है,
तू धरा की सिमटी माटी है,
तू ही माथे की लाली है,
तू दुर्गा तू ही काली है।
हे शक्ति, हे महामाया,
तू जन्मदाती, तू शीतल काया,
तू भिन्न नहीं तू नारी है,
तेरा कण-कण सब पर भारी है।
तेरा अंतर्मन संरक्षक है,
तेरी कोख में बसा ये जीवन है,
हे नारी, हे शक्ति महान,
तेरे हाथ में है जीवन की लगाम।
तू चाहे तो करदे सब कुछ भस्म,
तू चाहे तो हो सृष्टि का नया निर्माण,
तेरी कोमल छाया में पले बड़े हैं, कई हमारे वीर महान।
सींचे हैं तूने पुष्प अनेक,
तेरे कोमल आँचल में हमने,
पाई है प्रेम की अद्भुत खदान,
और पाया है जगत का सम्पूर्ण ज्ञान।
किन्तु आज हो रही मारा-मारी,
नर-नारी का भेद बताते,
सुनो ए ऐसा करने वालों,
हरण व शोषण करने वालों,
तू जागेगा! तू जागेगा!
जब बात स्वयं पर आएगी,
वो पल भी श्रापित होगा,
और हाथ न तिनका साथ रहे,
किस्मत भी कोस चली जायेगी,
वो काल बनकर नष्ट कर जाएगी,
तू पड़ा जमीन पर देखेगा,
और कोस-कोस मर जायेगा।
दो तिनका इज्जत मांगी थी,
कोई जागीर नहीं जो दे ना पाया।
क्या इतना भी हक़ नहीं कि हट जाये
तुम सबका काला साया?
क्या कमी रह गयी तनिक बतलाओगे?
या इन सब को भी गलती कहकर बच जाओगे?
अरे, मैं नारी हूँ! मैं नारी हूँ!
अग्नि का मुझको खौफ नहीं,
सौ बार अंगारों पर चल जाऊँ,
ऐसी मेरी सौगात रही!!