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Jyoti Bujethiya

Abstract

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Jyoti Bujethiya

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याद है तुम्हें ?

याद है तुम्हें ?

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याद है तुम्हें?

याद है जब तुम छोटी छोटी बातों पर मुझे रुलाया करते थे।

माँ की डाँट खाने के बाद भी मुझे सताया करते थे।

कितना भी हिस्सा तुम्हारा क्यों ना हो , आकर मेरी थाली से ही उठाया करते थे।

अपनी खुशियाँ खेल कर नहीं मेरी चोटी खींच कर बनाया करते थे।


याद है तुम्हें?

मेरी कामियाबी पर ठहाका लगाकर मज़ाक जब तुम बनाया करते थे,

फिर कहीं कोने में जाकर बार बार वही सपने सजाया करते थे।

मेरे सामने मजाक और अपने दोस्तों में मेरी मिसाल बनाया करते थे।

और फिर किसी रात में कभी शांति से उस बारे में अपने विचार उठाया करते थे।


याद है तुम्हें?

कभी हँस लूँ मैं तो तुरंत आकर मुझे रुलाया करते थे।

पर जब, पर जब मुझे कभी चोट लग जाए, तो अंदर ही अंदर उस दर्द को जताया करते थे।

अपने उस कोमल वाले प्यार को भी फीका से बनाकर दिखाया करते थे।

और मन ही मन में मेरी भी चिंता उठाया करते थे।


याद है तुम्हें?

सिर्फ चॉकलेट खाने के लिए राखी बंधवाया करते थे।

थोड़ी देर हो जाए तो रूठ कर छत पर बैठ जाया करते थे।

फिर हमसे हमारी भी चॉकलेट ले जाकर हमें चिढ़ाया करते थे।

पर फिर अंत में थोड़ा थोड़ा प्यार हमें भी दिखाया करते थे।


याद है तुम्हें?

आज फिर राखी का त्यौहार आया है !

इतने सालों बाद तुम्हें मेरे साथ राखी मनाने का वक़्त मिल पाया है।

आज भी वैसे ही हो या बदल गए?

तुम जैसे भी हो मेरे लिए हमेशा वैसे ही रहना।

इन फीकी और सीधी बातों से तो तुम्हारी शैतानियाँ ही भली हैं।

आज फिर एक ऐसा त्यौहार आया है जिसने इस बंधन का नींव से दीदार कराया है।



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