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Rajeev Rawat

Inspirational

5  

Rajeev Rawat

Inspirational

युद्ध के बाद सैनिक - दो शब्द

युद्ध के बाद सैनिक - दो शब्द

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यह युद्ध

किसी समस्या का अंत नहीं होता

मानवता यही पुकारती है--

फिर कौन है जिनकी अतृप्त रक्त क्षुधा 

जो आकर सदा ललकारती है--


एक सैनिक ने 

अपनी मां एक पत्र लिखा था-

शब्दों में उसके दिल का अनकहा दर्द छिपा था--


मां! 

तेरे आशिर्वाद से 

शायद मैं अभी तक जिंदा हूं-

कैसे बयां करूं व्यथा में अपनी 

जीत कर भी शर्मिंदा हूं--


कितने जीवन की आस लिए - 

अपने दिल में देश प्रेम का विश्वास लिए-

कुछ साथी 

रक्त रंजित, कुछ डरे हुए हैं-

कुछ मानवीय अवसादों से भरे हुए हैं--


मां हम क्या पाने को बन गये थे दानव - 

मां! जो तड़फ रहे 

या मरे हुए हैं वो भी थे न मानव --


कल 

उनकी मां का आंचल भी सूना होगा

कितनों के पुछे सिंदूरों का दर्द भी दूना होगा

कितने सपने टूटे होगें खाली फैली बाहों में

मां! कितनी बेदना - दर्द - बेबसी 

होगी उनकी आहों में--


जब भी आंखे बंद करता हूं

सामने आता चीखों का वह मंजर --

क्यों मर गयी संवेदनाये हमारी

और रेगिस्तान सी हो गयी बंजर - 


मां! 

कितनी आंखे 

इंतजार में कर प्रार्थना जागीं होंगी

कितनों ने अपनों के जीवन की मन्नत डोरी बांधी होंगी--


कितनी राखी के 

धागे इस युद्ध भूमि में टूटे होंगे--

कितने वायदे प्यार-प्रीत के झूठे होंगे-


न सोचा न संमझा मैंने

बस मातृभूमि की 

सुन कर एक पुकार गया हूं-

लेकिन मां! 

न जाने क्यों ऐसा लगता है

युद्ध जीत कर भी मै कुछ न कुछ तो हार गया हूं.

        


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