पीर बहुत बढ़ जाती है
पीर बहुत बढ़ जाती है
उन लम्हों की बात न छेड़ो
पीर बहुत बढ़ जाती है ।
भूल पुरानी बातें यारो
नये ख्वाब अब बुनता हूँ
अन्तर्मन को छोड़ नेह की
बात नही अब सुनता हूँ
याद तनिक जो आये उनकी
टीस उभर फिर आती है ।
जिन राहों में केवल पत्थर
उन राहों में जाना क्या
मतलब की इस दुनिया मे फिर
गीत प्रेम के गाना क्या
बात पुरानी मगर कसम से
अन्दर अन्दर खाती है ।
छोड़ अकेला चला गया जो
उससे अब कुछ क्या कहना
शूल चुभाती रातों में अब
भोले सपने क्या बुनना
मगर सोच सब इन आँखो में
नाहक बदली छाती है ।
दिल के खालीपन को फिर भी
आज नही कल भर लूंगा
उसके ऊपर आँच न आये
मुश्किल सारी हर लूंगा
व्यथित जिन्दगी भले आज पर
गीत खुशी के गाती है ।