परिंदा
परिंदा
वो परिंदा जलकर राख हुआ,
तन उसका यूँ ख़ाक हुआ,
पहचान हुई फिर उसकी खुद से,
बहकर फिर वो आब हुआ,
वो परिंदा जलकर राख हुआ!
बेकार हुआ, बेज़ार हुआ,
पानी में जलकर भाप हुआ,
उड़ने की कई उमंगें थी,
वो उड़कर अंबर पार हुआ,
वो परिंदा जलकर राख हुआ!
आज़ादी उसकी उड़ना था,
वो उड़कर यूँ आज़ाद हुआ,
पानी का एक बुलबुला था,
पानी को ही स्वीकार हुआ,
वो परिंदा जलकर राख हुआ!
मुसाफिर वो बेनाम हुआ,
देह से भी आज़ाद हुआ,
परिंदा अब वो रहा नहीं,
जीवन का वो सारांश हुआ,
वो परिंदा जलकर राख हुआ!