प्रीत
प्रीत
आपस में दिल मिले, बढ़े आपसी प्यार,
लगे जहां में किसी का, ऋण भी उधार।
दूध व पानी से मिले, दुनिया गाये गीत,
जन जन में चर्चा हो,कहलाती यह प्रीत।।
आये हैं जहां में, आपस में क्यों है बैर,
मन मंदिर में सोच ले, कोई नहीं है गैर।
आपस में प्रेम हो, चलती जाये यह रीत,
ईश्वर के दर्शन हो, यह बन जाएगी प्रीत।।
चार दिनों की जिंदगी, धन से क्यों प्यार,
सोच जरा इंसान तू, कर्म धर्म है उधार।
एक दूजे के हो जाये, मिलती तब जीत,
भाई भाई सा प्रेम ही, कहलाती है प्रीत।।
साथ नहीं कुछ जाये, फिर क्यों मोह मन,
आत्मा अमर कहे, जल जाएगा तेरा तन।
जीवन आना जाना, जैसे गर्मी कभी शीत,
छोड़ गुमान अपना अब, जोड़ लेना प्रीत।।
