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varsha Gujrati

Romance Classics

4  

varsha Gujrati

Romance Classics

प्रेमग्रंथ

प्रेमग्रंथ

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चलो मिलकर,

प्रेमग्रंथ लिखते हैं ....

एक-दुसरे की,

सांसो का छंद लिखते है ....

इन अलंकार को !

ह्रदय पर,

सुशोभित करते हैं .....


सजकर हम, 

एक-दूजे की महक से ....

प्रेम की शीतलता से,

हर्दयपीड की रचनाओं को,

तृप्त करते हैं .....


हम-तुम प्रेम का वो आसमां हैं,

जो रंगीन इंद्रधनष को ....

हमारे व्याकुल हर्दय को,

अपने रंगों से छाया देता है ....

हम उस रंग की कल्पना लिखते हैं .....


भावनाओं की असंख्य लहरें,

जो हिलोरें लेती है तुझमें ....

और सीमट के रह जाती है,

वो मेरे आंचल से,

हम मिलकर वो संदर्भ ....

एक-दुजे की आंखों में देखते हैं ....


होठों पर करवट लिए,

उन प्रेम शब्दों से ... हम !

पिघला हुआं वो मुलायम एहसास ....

सांसो में एक-दुजे के,

फिर पढ़ते हैं ...


प्रेम चांदनी की चादर वो ओढे़ .....

आई अनगिन रातों का .....

सांसो की टहनियों पर बैठी,

उस औस की बूंदों का ....

वो सुकून हम लिखते हैं ....


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