न जाने क्यों
न जाने क्यों
न जाने क्यों
कभी आवारगी अच्छी लगती है
अनजानी सड़को पर यूँ ही घूमना अच्छा लगता है
बिना वज़ह ,बस यूँ ही
कभी मुस्कराना ,फूलो को निहारना
चाँद से बाते करना ,कुछ गुनगुनाना
कभी बचपना ,कभी पागलपन
अच्छा लगता है -----
कभी खुद को भूल जाना ---
ना जाने क्यों ----
कभी आसमा को यूँ ही निहारना
कुछ ढूँढना उसमे ,
दूर तक फैले क्षितज को देखना
और उनमे खो जाना
न जाने क्यों
अच्छा लगता है बस यूँ ही
चलते रहना तुम्हारे साथ
हो हाथो में हाथ
ना रास्ता ख़त्म हो ,और
ना हमारी बातें ,
जैसे बहुत कुछ हो बताने को
पर कहा भी नहीं कभी ऐसे
न जाने क्यों कभी कभी
आवारगी अच्छी लगती है ------
ना जाने क्यों?