dr vandna Sharma

Abstract

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dr vandna Sharma

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आओ हम सब पेड़ लगाएं

आओ हम सब पेड़ लगाएं

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आओ सुनाऊं तुम्हें एक कहानी 

ना कोई राजा ना कोई रानी 


जा रहा था एक पथिक अपनी ही धुन में 

ख्वाबों को बनता हुआ मन ही मन में 


सूरज लगा तेज चमकने राही छाया लगा

ढूंढने चारों तरफ नजर दौड़ाई 


दूर दर तक थी ना कोई परछाई 

प्यास से गला सूख रहा था 


साहस पीछे छूट रहा था 

शायद कहीं कुछ ढूंढ रहा था 


ठंडी छाया के लिए तड़प रहा था 

सोच रहा था मन ये उसका दे दे


कोई पानी का छपका  यहां कोई पेड़

होता मौसम कुछ और होता होती


चारों तरफ हरियाली झूम उठती डाली डाली 

आओ हम सब पेड़ लगाएं धरती को

आने वाले संकट से बचाएं।


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