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Dr.Shilpi Srivastava

Romance

4  

Dr.Shilpi Srivastava

Romance

अपरिचिता

अपरिचिता

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थे अपरिचित भीड़ में तुम, 

अपनी धुन में थे रमे,

था नहीं आभास मुझ को, 

कब मिले साथी बने 


ज्यों कुमुद पर चन्द्रमा की,

चाँदनी का है असर, 

ज्यों रवि की कान्ति से ही, 

खिल उठा दल में कमल 


था मेरा भी हाल यूँ ही, 

तुम हँसे थे, मैं खिली थी,

तेरी बातों से लगा था, 

सिन्धु से सरिता मिली थी 


थे नहीं अंजान अब हम,

हो गई विश्रब्धता,

था क्षितिज लोहित निमीलित,

बन गई क्यों- "अपरिचिता"। 


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