प्रेम
प्रेम
पहाड़ी झरनों सा झरता उन्मुक्त
और निश्छल है प्रेम,
तो कभी पहाड़ों पर
बर्फ की चादर ओढ़कर,
ध्यान में बैठे हुए किसी
हठी योगी सा है प्रेम।
पहाड़ी झरनों सा झरता उन्मुक्त
और निश्छल है प्रेम,
तो कभी पहाड़ों पर
बर्फ की चादर ओढ़कर,
ध्यान में बैठे हुए किसी
हठी योगी सा है प्रेम।