प्रेम पुजारी
प्रेम पुजारी
अनवरत चाहा मीत से प्रीत की शुरुआत,
इस इहलोक में तुम मिलीं जैसे पारिजात,
सहसा मानस में प्रवाहित हुआ प्रेम प्रपात,
प्रणय गीत गया पाकर तुमसे मीठा आघात |१|
अति मनोरम हैं तुम्हारे सैम मीन सम नयन,
हंसिका सम है तुम्हारा लावण्य लास्य चलन,
लाज से भरी लता जैसे छिपाती हो चंद्रवदन,
प्रेयसी के रूप में जीवन में किया मैंने चयन |२|
अत्यंत आकर्षक अद्भुत है तेरा रूप,
तेरा परिचय मेरे लिए है सदा अपरूप,
मेरे सोच में भरा है एकमात्र तेरा स्वरुप,
तुम स्वयं हो एक देदीप्यमान दिव्य दीप |३|
तुम अपने आप हो सौम्य सौन्दर्य परी,
तुम हो मेरे लिए सबसे अधिक प्यारी,
बनना चाहता हूँ तुम्हारा प्रीतम प्रहरी,
तुम्हें देखकर बन गया मैं प्रेम-पुजारी |४|

