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Arunima Bahadur

Abstract Others

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Arunima Bahadur

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प्रेम की गहराई

प्रेम की गहराई

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पी लो आज इन अश्रुओं को

सैलाब न तुम बनने देना,

हे शिव आज जरा,

इस पीड़ा को आश्रय देना,

वरन निमग्न होगा ब्रह्मांड सारा,

इस पीड़ा के सैलाब में,

मेरी इस पीड़ा को,

क्या समझोगे भाव से,

मानवता के चीरहरण पर,

अश्रु अविरल बह रहे,

मेरी इस पीड़ा को

क्यों नहीं समझ रहे,

यहाँ नहीं किसी को रहना,

सबको ही तो जाना है

बस कुछ पल का ही तो

रैन बसेरा बनाना है

पल पल पग पग

बस छलावा छलावा है,

नारी को बस देह समझ,

अधिकार अपना माना है,

वासना को प्रेम दिखा

बस छलने का बहाना है,

प्रेम की गहराई को कब

किसने पहचाना हैं।।



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