प्रेम खूब निभाया उसने भी है।
प्रेम खूब निभाया उसने भी है।
मैंने खोया है झूठे ख्वाबों को,
सच्चे एहसासों को दबाया उसने भी है।
खामखा झूठा कह दिया उसको,
साथ फेरो की कसमें निभाया उसने भी है।।
मैं ठहरा मुसाफिर उनके शहर का,
किरदार हमसफर का निभाया उसने भी है।
कैसे कह दूँ उन्हें बुरा इश्क का,
बोझ जिम्मेदारियों का उठाया उसने भी है।।
सो गया मैं आँसुओं को पिरो के तकिए में
यादों में लाकर किसी और को रोया उसने भी है।
कैसे कह दूं उनको बुरा इश्क का
प्रेम खूब निभाया उसने भी है।।

