बेबसी
बेबसी
गुमशुम सा हु इन हवाओं में
कुछ शुध भी ना है इन फिजाओं में
कुछ कहना चाहु लेकिन कह न पाऊं
रोना चाहु इन रातों में, पर रो भी न पाऊं
धुंधला सा दिखाता है सपनों में,
जहाँ मेरी मंजिल होगी
गम के इस दर्द से,
फिर एक नई सुबह होगी
कैसी है ये जिंदगी मेरी, कैसी बेबशी भरी
किससे कहूं, कहूं बाते दिल की
खुद से कहूं, दर्द सारे दिल की
डरता हूँ खो न दूँ, मैं अपने प्रेम को
हर दिन याद आती, आती हैं रात को
चुप होगे सभी बैठे हैं,
कोई नहीं सुनेगा मुझे गौर से
जो साथ देने की वादा किए हैं
वो भी छोड़ के चले गए इस दौर से
गुमसुम सा हूँ इन हवाओं में
कुछ सुध भी ना है इन फिजाओं में
कैसी है जिंदगी मेरी, कैसे बेबसी भरी।