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Juhi Grover

Romance Tragedy

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Juhi Grover

Romance Tragedy

परदेसी

परदेसी

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दिल से जब अपने निकालना  चाहती  हूँ तुम्हें, 

तुम हो कि सामने आ कर के खड़े हो जाते हो,

नए  ख़्वाब   अब   बुनना   चाहती  हूँ, और

तुम अपने  ही  ख़्वाब  याद  दिला  जाते हो।


बार बार भूलने की कोशिश करना चाहती हूँ तुम्हें,

तुम हो कि अपनी ही अहमियत जता जाते हो,

दिमाग से  काम  लेना  चाहती हूँ अब, हर बार

तुम हर  बार  बस दिल  को ही जिता जाते हो।


पतझड़ का मौसम बन बार बार जीना चाहती हूँ,

तुम हो कि बार  बार सावन बन भिगो जाते हो,

दिल के सब दरवाज़े  बन्द कर लेना चाहती हूँ,

और तुम बन्द  दरवाज़े पर  दस्तक दे जाते हो।


मौत से रूबरू  होना  चाहती हूँ, बस एक बार

तुम हो कि बार बार ज़िन्दगी की राह दिखा जाते हो,

ज़रा सी भी  जब  अन्धेरे  में  जाना  चाहती हूँ,

तो आ कर के जुगनु का झुण्ड बन कर आ जाते हो।


बस एक  आखिरी बात  कहना चाहती हूँ, तुमसे

चले गये तुम, यादों को साथ क्यों नहीं ले जाते हो?

दम घुटता है मेरा अपने ही शहर में तुम्हारे बिना,

बताओ,मुझे भी क्यों तुम परदेसी नहीं बना जाते हो?


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