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Pankaj Prabhat

Drama Others Children

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Pankaj Prabhat

Drama Others Children

पिट्ठु

पिट्ठु

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कैसे जीते हैं भला, इनसे सीखो ये अदा,

ऐसे खुश रहते हैं ये, जैसे दुनिया जीत लेते हैं ये।

पीठ पे सहकर गेंद की चोट भी, 

सह कर पाँव में खरोच भी 

खेल किया जाता है…..

आ बता दें, ये तुझे, कैसे जिया जाता है…..


सात जो गोटी है वो, बड़ी से छोटी है वो,

एक दूसरे पर खड़ी, हिलती रहती है वो,

एक दुश्मन है गेंद, जिससे गिरती है गोटी,

बच कर गेंद से फिर, सजानी होती है गोटी।

लगे सौ बार चाहे गेंद की चोट सही,

हौसला टूटता नहीं, गोटी सजती है रही,

गोटी सजा कर ही, दाँव पूरा होने पर ही, 

जश्न किया जाता है.....

आ बता दे ये तुझे कैसे जिया जाता है।


चीज़ इस चोट से बड़ी, इस जमाने में नहीं

जो मज़ा सहलाने में है, गेंद से बच जाने में नहीं,

तो भाई टूटी-फूटी जो मिले पत्थर गोटी सजाने के लिए,

और काफ़ी दो गज़ है ज़मीन, खेल जमाने के लिए।

कैसे नादान हैं वो, खेल से अंजान हैं जो,

चोट ना लगती अगर, तो क्या खुशी की थी कदर

दर्द खुद है मसीहा दोस्तों, दर्द से भी दवा का दोस्तों, 

काम लिया जाता है….

आ बता दें, ये तुझे, कैसे जिया जाता है…..


खुशी ये महलों की नहीं, रंग ये गलियों का है,

दे दो थोड़ी सी जगह, अपनी गलियों में इसे,

झूम कर नाचने दो, आज मुझको मस्ती में ज़रा,

ले चलो साथ मुझे, मेरे बचपन में ज़रा,

आज फिर जी भर कर मुझे, गेंद से मारो जरा,

उम्र किस काम का है, धोखा बस नाम का है

रोके जो दिलों को खेल से, हाथों से ऐसी रीत को 

तोड़ दिया जाता है…..

आ बता दें, ये तुझे, कैसे जिया जाता है…..


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