STORYMIRROR

ayush jain

Classics Inspirational

4  

ayush jain

Classics Inspirational

"फर्ज़ निभाया है "

"फर्ज़ निभाया है "

1 min
344


मैं श्रवण तो नहीं फिर भी कुछ

जिम्मेवारियों का बोझ अपने कंधे पर उठाया है,

घर में बड़ा बेटा हूँ..बेटे होने का "फर्ज़ निभाया है "..


नहीं बनना मुझे उनके बुढ़ापे की लाठी,

मैंने खुद को पिता का दाहिना हाथ बनाया है,

घर में बड़ा बेटा हूँ..बेटे होने का "फर्ज़ निभाया है "


नहीं चाहिए मुझे तरह तरह के पकवान थाली में,

माँ ने मुझे जो रूखा सूखा अपने हाथों से खिलाया..

मुझे उसमे बहुत आनंद आया है,

गर्व से कहती है वो, मैंने बेटे होने का "फर

्ज़ निभाया है"..


सुख दुख सारे बांटता हूँ उससे,

जीवनसाथी मे मुझे एक दोस्त नजऱ आया है

मेरे लिये अपनों को छोर आयी है वो

सात फेरों का हर एक वचन निभाया है

जीवनसाथी होने का हर एक "फर्ज़ निभाया है।


जब तक बेटा था तब तक अनजान था मैं

अब पिता बना हूँ तो ये समझ आया है,

एक बेटे कि हसी में पिता का पूरा जीवन समाया है,

उसके हँसते खेलते बचपन मे मुझे अपना

बचपन नज़र आया है,

हाँ मैंने भी एक पिता होने का "फर्ज़ निभाया है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics