Madan lal Rana

Tragedy Inspirational

4.0  

Madan lal Rana

Tragedy Inspirational

फिसलती जिन्दगी

फिसलती जिन्दगी

1 min
421


मुझे लगता है मैं बहक गया हूं

जगह से अपनी ढलक गया हूं


पांव धरती पर पड़ता नहीं

आदर्शों पर मैं ठहरता नहीं


क्योंकि जीवन के जो समझौते हैं

वो मेरे ही हक में जाते हैं


मैं केवल स्वयं के लिए जीना चाहता हूं

अपनी श्रेष्ठता का मद पीना चाहता हूं


सुबह-शाम एक लत सी है

बस मैं हूं और मेरी मस्ती है


पर एक विचार है मन में कौंध रहा

जो अंतरात्मा तक को कचोट रहा


क्या यही जीवन का मूल है

या मानवता के लिए शूल है


क्यों छूट रही मानवीय धुरी है

क्या ऐसी मजबूरी है


यहां क्यों लोग ऐसे जीते हैं

क्यों सब के सब गये बीते हैं


इसका क्या औचित्य है

यह विषय सधन चिंत्य है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy