फिर भी में पराई हूँ
फिर भी में पराई हूँ
वक़्त-बेवक़्त मुलाकात से वो
धड़कन सा महसूस होती हैं
वो कहते गए में पराई हूँ
फिर क्यूँ ये हकीकत अनजान हैं
नज़रे हर वक़्त तलाशे उसको
ना टूटे ये ख्वाब, उम्मीद हैं
वो कहते फिर, आज कुछ नहीं
फिर क्यूँ मेरे अल्फ़ाज़ उनकी खामोशी पढ़ लेता हैं...