इश्क़ और समाज
इश्क़ और समाज
1 min
237
खफा तेरे इश्क़ की दिल से
आज भी ये धड़कन हुआ करती हैं
वक़्त ए ख़ामोशी इतनी ज़रुरी भी
तो नहीं
देख, कितनी फ़िक्र, इस दिल को
बेक़रार रखती हैं
हाँ तेरे यादों के सहारे बेशक,
बस कुछ पल बीत जाने की
उम्मीद लगा रहती है
"मसरूफियत" भी कितनी ज़ालिम
आज कल की चीज़ है
जो बस एक बहाने को हकीक़त के,
रूप में रंग देती हैं . .