फागुन का सुरूर
फागुन का सुरूर
देखो, देखो फागुन आया।
खुशियों का संदेशा लाया।।
सुनो बयार कह रही है कुछ,
सर्र सर्र यह कैसी माया?
झूम रही है पादप डाली।
नव पल्लव संग हो मतवाली।।
कोयल निज स्वर में मदमाती,
घूम रही है डाली- डाली।।
वन में दहकी पलाश अँगीठी।
भानु रश्मि की नज़र टकटकी।
बतिया रहे हैं हंस-हंसिनी।
प्यार भरी कुछ मीठी मीठी।।
पवन संग में धनिया महकी।
शबनम संग पंखुड़ी चमकी।।
फूलों ने ज्यों पाँखें खोली,
भ्रमरमण्डली त्यों आ धमकी।।
प्रकृति जब कौमार्य दिखाती,
मानव मन में प्रेम जगाती।।
रंग रंग जब मिले परस्पर,
प्रकृति रंगीली शरमा जाती।।
रंगों का त्योहार है होली।
रंग सुनाते प्यार की बोली।।
ज्ञान धरा का धरा रह गया,
रंग- रंगीन हुई हमजोली।।