मैं मजदूर मुझे तो......
मैं मजदूर मुझे तो......
मैं मजदूर ! मुझे तो मेरा काम है प्यारा।
काम से बढ़कर नहीं कोई है मेरा सहारा।।
अन्न उगाता हूँ खेतों में मैं श्रमवश नित।
कड़ी धूप में, तपता रहता परसेवा हित।।
आशाओं के रेत में अंकुर जब उगते हैं।
उन्हें देखकर मन होता मेरा प्रफुल्लित।।
मैं मजदूर ! परिश्रम से पहचान हमारा।
काम से बढ़कर नहीं कोई है मेरा सहारा।।
मेरे वंशज लाए गंगा को भू-तल पर।
स्वर्ग बनाया है धरती को हमने मिलकर।।
मरु भूमि में पुष्प खिलाए हैं हमने ही,
शस्य श्यामला के साक्षी हैं शशि व दिनकर।।
मैं मजदूर ! काम से चमके यश का तारा।
काम से बढ़कर नहीं कोई है मेरा सहारा।।
मैं दशरथ माँझी सम नव इतिहास बनाता।
जिनके सम्मुख पर्वत भी है शीश झुकाता।।
सागर की लहरें भी
तट पर मिलने आतीं।
मैं सागर के वक्षस्थल पर नाव चलाता।।
मैं मजदूर ! श्रम से होता मेरा गुजारा।
काम से बढ़कर नहीं कोई है मेरा सहारा।।
तन,मन,धन के शोषण खूब हुए हैं मेरे।
मंदिर,मस्जिद,महल,किले साक्षी हैं मेरे।।
जग जाहिर है मेरी कला की ऐसी कीमत।
जिसकी संरचना में हाथ कटे हैं मेरे।।
मैं मजदूर ! पर हार न मैंने है स्वीकारा।
काम से बढ़कर नहीं कोई है मेरा सहारा।।
शहर, नगर कहते हैं मेरी अकह कहानी।
पर दुनिया के लोग बोलते नफरत बानी।।
मुझे निम्नता की नजरों से लखते हैं सब।
खुद को श्रेष्ठ समझते हैं निष्ठुर अभिमानी।।
मैं मजदूर ! मेरी किस्मत है काम हमारा।
काम से बढ़कर नहीं कोई है मेरा सहारा।।