महिला दिवस
महिला दिवस
कब होगी महिला आज़ाद ?
कब होंगे सपने आबाद ?
भले सृष्टि की संरचना वह,
पर स्थान है पुरुष के बाद।।
कब तक वो परछाईं बनकर,
-साथ फिरेगी दासी बनकर।
संस्कार के जाल में कब तक
जुल्म सहेगी मन मसोसकर।।
निज जीने की दिशा मोड़कर,
सपनों की उड़ान छोड़कर।
जीना पड़ता है क्यों उसको?
अरमानों का गला घोंटकर।।
सदियों से ज़ुबान पर ताला,
पुरषों ने ही सदा से डाला।
लिंग -भेद का दंश सहा है,
असमानता का पीया पियाला।
क्यों सहना पड़ता है उसको?
औरों के दुःख दर्द भी उसको।
कहने को देवी का रूप है,
पर अपमान मिला है उसको।।
कठपुतली बन क्यों जीएगी ?
गरल ताड़ना क्यों पीएगी ?
जागो महिला अब तो जागो,
फटी चदरिया तू क्यों सीएगी ?
महिला दिवस सार्थक होगा।
पुरुष साथ जब उसके होगा।
मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर,
पुरुष साथ जब उसका देगा।।