STORYMIRROR

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

4  

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

पासे प्रकृति के

पासे प्रकृति के

1 min
290

गो रस को बेचना पाप होता था।

एक समय ऐसा भी था।

चाय का दूध हो, या मट्ठा मटकी भर,

गाँव में यूँ ही दिया जाता था। 

गाँव की बेटी की शादी होती थी , 

दाँव पर गाँव की इज़्ज़त लगी होती थी।


दूध बिकने लगा, फिर यह दौर आया।

पैसा मिल जाए ईमानदारी से, 

मेहनत से, कुछ समझदारी से।

पर मिलावट से दूरी थी।

असली चीज़ देना ज़रूरी थी।


मिलावट का फिर दौर आया,

देसी घी में रीफ़ाइंड तेल, दूध में पानी मिलाया।

मिलावट के इस प्रेत ने, न मिठाई छोड़ी न दवाई।

 जय होने लगी धन की, पैसा ही धर्म बना। 


प्रकृति की अब बारी आयी,

पिंजरे में बंद हुए इंसान सभी, 

कोरोना का रोना, रोता इंसान।

मिलावटी सामान खा / पी कर कमजोर हुआ इंसान।

हवा बिकने की, अब बारी आयी। 

दिन / रात गिनने वाले नोटों को,

अब गिनने लगे हैं साँसें।

बाज़ी हार जाओगे सभी,

यह प्रकृति के है पासे  !


जाग जाओ अभी मौक़ा है, 

भस्मासुर बन, ख़ुद को न भस्म करो।

थोड़े में जी लो, सुकून से सो लो। 

थोड़ा ख़ुद पर रहम करो।

थोड़ा सा तो रहम करो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy