"पारा चला गया 48 पार"
"पारा चला गया 48 पार"


पारा चला गया है, 48 के पार प्यारे
सूर्यदेव बरसा रहे है, आजकल अंगारे
जल रही है, धरती, रो रहे मनुष्य सारे
ढूंढ रहे है, तेज धूप में पेड़ो के सहारे
गर्म हवा के झोंको से जल रही, काया
पंखे, कूलर सब ही गर्मी के आगे हारे
वहां होती है, इस गर्मी में भी शीतलता
जहां लगी होती है, पेड़ों की कई कतारें
परंतु हम सारे इंसान है, स्वार्थ के मारे
काट रहे है, पेड़ पर पेड़ बहुत ही सारे
जो काटते है, हरे पेड़, वो सब है, हत्यारे
इन पर चलना चाहिए, मुकदमा हत्यारे
खास इनके लिये कठोर कानून बने
जो काटे पेड़, उन्हें भेजे जेल, सरकारें
जबकि हम जानते है, पेड़ में प्राण है
फिर क्यों काटे जाते, इतने पेड़ सारे
इनके लिए न जिम्मेदार पशु, पक्षी
इनके जिम्मेदार है, इंसानी ही नारें
बढ़ती जनसंख्या ने छीने पेड़ हमारे
फिर कह रहे है, गर्मी से हुए, बेचारे
वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलाते है, लकड़हारे
अहसानफरामोश है, हम तो इंसान सारे
जीवित रहते, 5 पेड़ लगाते पूर्वज हमारे
अब पेड़ों का कर्ज जा रहा, साथ हमारे
इससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ा है
कई स्थानों पर सूखा, अकाल पड़ा है
गर्मी ने भी तोड़ दिए, अब रिकॉर्ड सारे
पारा भी चला गया है, 48 के पार प्यारे
फिर से जीना गर हरियाली के सहारे
आओ प्रति व्यक्ति 5 पेड़ लगाए, सारे
फिर देखना तुम कुछ बरसों बाद बहारें
कैसे शीतल होते, सूर्य से बरसते अंगारे