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Prashant Kaul

Tragedy

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Prashant Kaul

Tragedy

पानी जो लापता है

पानी जो लापता है

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कभी नदियों में बहा करता था

आज बोतलों में बंद मिलता है

कभी बहुत था जमाने के लिए

आज एक के लिए भी कम पड़ता है

पानी जो लापता है।


कभी फुहारों से निकलता था

आज बस आंखों से बहता है

कभी जख्म पर मरहम की

तरह लगता था

आज ना मिले तो दिल

यह जलता है

पानी जो लापता है।


कभी बहता था बेखौफ होकर

आज सुखा सुखा सा लगता है

कभी हरियाली का स्रोत था जो

अब बंजर जमीन पर कहीं कहीं

पड़ा मिलता है

पानी जो लापता है।


कभी बच्चे खेला करते थे जिसमें

आज उन्हीं की मौत का कारण बनता है

कभी अमृत कहते थे जिसको

आज जहर से भी बदतर

हालत में मिलता है

पानी जो लापता है।


अभी भी हमने खुद को ना बदला

तो पानी बदलता जाएगा

एक बूंद को तरसेंगे सारे

और पानी लापता ही रह जाएगा

पानी लापता ही रह जाएगा।


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