पाँच अग्नियाँ।
पाँच अग्नियाँ।
पाँच अग्नियाँ छिपी बैठी मानव में, जिनका उसको नहीं है ज्ञान।
ईंधन हवा के पाते ही, हो जाते हैं अति बलवान ।।
कामाग्नि, क्रोधाग्नि ,शोकाग्नि, द्वेषाग्नि और ईर्ष्याग्नि है इनके नाम।
जो भी फँसा इनके चक्कर में, जीवन बन जाता श्मशान।।
काम, क्रोध तो ऐसा विष है, साधारण मनुष्य हो जाता नाकाम।
इसका जादू ऐसा चलता, मुनि, तपस्वी भी हो गए परेशान ।।
सकारात्मकता का कवच पहन, भगाना है इनको आसान।
विवेक- बुद्धि को तुम अपना लो, कर देंगी मंजिल आसान।।
गर करना है शोक को दूर, करो संसार की असारता का ध्यान।
वीतराग- पुरुष की शरण में जाओ, प्रसन्नता के जो है धनवान।।
बात करें अब ईर्ष्या ,द्वेष की मानव करता सब उल्टे काम।
अपना घर तो सुधार ना पाता, दूसरों को देता है ज्ञान।।
अगर चाहते हो इनसे बचना ,सबको देखो एक समान।
" नीरज" तू ठहरा अज्ञानी, सबका मालिक है भगवान।।