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अंतर्मन की आवाज़

अंतर्मन की आवाज़

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कहना है कुछ मुझे भी आज,

सुन रहे हैं आप?

सुनानी है आपको भी मेरे अंतर्मन की आवाज़

सुन रहे हैं न आप?


नहीं हूँ किसी आँगन का कुआँ

एक अविरल नदी हूँ मैं

ना ही कोई घूर्णन ग्रह,

एक अविचल पर्वत हूँ मैं

सुन रहे हैं आप?

नहीं हूँ किसी सोने के पिंजरे में कैद चिड़िया

उन्मुक्त गगन को चूमने वाली एक आज़ाद पंछी हूँ मैं

ना ही किसी बगिया की निर्बल शोभा

घने जंगल में उगने वाली अवारा दूब हूँ मैं।


नहीं है मेरी कोई हद या सीमा

उम्मीदों का नया क्षितिज हूँ मैं

ना ही हूँ कोई प्यारी सी गुड़िया

चलती-फिरती ज्वाला हूँ मैं

सुन रहे हैं न आप?

मत बाँधिए नियमों की जंज़ीरों से

आज़ाद जीना चाहती हूँ मैं

मत खींचिए कोई लक्ष्मण रेखा

बेखौफ़ बढ़ना चाहती हूँ मैं।


आपकी तकलीफों का कारण नहीं

उनका निवारण बनना चाहती हूँ मैं

सौंदर्य की कोई मूरत नहीं

सफलता की मिसाल बनना चाहती हूँ मैं

सुन रहे हैं न आप?

करनी है मुझे भी ख्वाबों से सगाई

तोड़ कर सारे कैद, पा कर उनसे रिहाई

सपनों से करना है ऐसा गठबंधन

जिसमें बंधी रहूँ हमेशा, ना हो कभी जुदाई।

सुन रहे हैं न आप?


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