मेरे शब्द
मेरे शब्द
शब्द, एक हो हज़ार हों
पर होते क्या है, कोई अंदाजा है?
शब्द, अक्षरों की लड़ी सी हैं,
जो कितने दिलों की बातें बताते हैं।
कभी गीत तो कभी नज़्म बन जाते हैं,
कभी कथा तो कभी क़िस्सा याद दिलाते हैं।
कभी चुप रहकर भी कह देते हैं कुछ अनकहा,
कभी बातों को बातों से उलझते हैं।
कभी पत्थर की मूक मूरत को उकेर देते हैं,
कभी चारों तरफ इंद्रधनुषी रंग बिखेर देते हैं।
शब्दों के सब आदी हैं, पर शब्दों का नहीं कोई अंत,
जो कल था, जो आज है, जो कल होगा सबका
हिसाब है इन शब्दों में अनंत,
इतिहास बनकर सदियाँ समझा जाते हैं।
ये शब्दों से भरी शब्दांजलि, है बहुत कमाल की,
शब्द चुभते भी बहुत हैं, सजते भी बहुत हैं,
आप भी चुनिए अपने शब्द मगर ध्यान से,
क्योंकि ये बात भी बना जाते हैं, दिल भी दुखा जाते हैं
