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Kratikas _WritingTale

Others

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तज़ुर्बे

तज़ुर्बे

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तज़ुर्बे कुछ हैं, कुछ हो रहें हैं,

लड़खड़ा रहें हैं, फिर संभल रहें हैं ।


कभी गिर रहें हैं, कभी गिर के उठ रहें हैं,

दिये से जल रहें हैं, हवा से चल रहें हैं।


तज़ुर्बे कुछ हैं, कुछ हो रहें हैं,


साफ़ दिल के मालिक रहें हैं, धोखे वाली फितरत नहीं,

कभी ढाल रहें हैं, कभी खुद ढल रहें हैं।


तज़ुर्बे कुछ हैं, कुछ हो रहें हैं।


लोगों की नाराज़गी मोल लिये बैठें हैं,

मन में ना हो, पर होंठों से हां कहकर अपने ही दिल को छल रहें हैं।


तज़ुर्बे कुछ हैं, कुछ हो रहें हैं।


परवाह का क्या सिला मांगे किसी से,

चाहत की क्या वफ़ा मांगे किसी से,

चलने का नाम है ज़िंदगी, इसलिए चल रहें हैं।


तज़ुर्बे कुछ हैं, कुछ हो रहें हैं।


धूप में भी, छांव में भी, दिन में भी,रात में भी,

दिल में भी, दिमाग़ में भी,

नई सीख लिए ज़माने से, हम भी अब बदल रहें हैं।


लड़खड़ा रहें हैं, संभल रहें हैं,

तज़ुर्बे कुछ हैं, कुछ हो रहें हैं।


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