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Kratikas _WritingTale

Abstract

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Kratikas _WritingTale

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कलियां

कलियां

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हम कलियाँ हैं उस बगिया की,

जिसे मायका कहते हैं …

जब जब हम खिलती हैं वहाँ

कभी खुशबू बिखर जाती है तो

कभी छाँट दी जाती है


कभी लक्ष्मी कहलाकर

माँ को सम्मान दिलाती हैं

तो कभी बोझ बनकर माँ को

फटकार सुनवाती हैं |

कभी लाड़ प्यार से पलतीं हैं हम तो

कभी सिर्फ ज़िम्मेदारी सी बन जाती हैं


कभी पढ लिखकर गर्व कराती,

कभी धूल बन जाती हैं,

दान में जाकर मात-पिता को हम ही स्वर्ग दिलाती हैं


नवविवाहिता के रूप में

जब हम कली खिल जाती हैं,

नये रंग से नयी उमंग से

अपना ससुराल सजाती हैं


परिवार की सेवा करतीं,

पति से प्रेम निभाती हैं ,

सब में मिलकर खुद ढल जाती

पर फ़िर भी मुस्कुराती हैं


मात्रत्व से पूर्ण तो होती

फ़िर बच्चो पर जान लूटाती हैं, सबके बीच में कभी कभी

हम खुद को नीचा पाती हैं


काश ! कुछ मन का किया होता,

अपना अस्तित्व खुद बनाया होता,

बैठ आइने के सामने मन में सोच रो जाती हैं


जीवनभर सबका जीवन महकाकर

खुद मुर्झा जाती हैं, हम कालियाँ हैं

उस बगिया की, जिसे मायका कहते हैं


मुर्झाना ही था एक दिन हमको तो क्यों खिलने देतें हैं


सुनो प्रार्थना हम बेटियों की,

कुछ हद तक तो हमें स्वतंत्र करो..

जीवन अपना अपनी शर्तों पर अब तो हमको जीने दो


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